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अजन्मा प्रभु! जिन योगियों ने अपनी इंद्रियों और प्राणों को वश में कर लिया है,वह भी, जब गुरुदेव के चरणोंकी शरण न लेकर उच्छरंकल एवं अत्यंत चंचल मन-तुरंगको अपने वशमें करने का प्रयत्न करते हैं, तब अपने साधनों में सफल नहीं होते। उन्हें उन्हें बार-बार खेद और सैकड़ों विपत्तियों का सामना करना पड़ता है, केवल श्रम और दु:ख ही उनके हाथ लगता है।उनकी ठीक वही दशा होती है, जैसी समुद्र में बिना कर्णधार की नाव पर यात्रा करने वाले व्यापारियों की होती है।
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