पूर्वाषाढ़ा


 समुद्र में बिना कर्णधार की नाव के
व्यापारियों की दशा = बिना गुरु के ध्यान करने वाले योगी की दशा= इंद्रियों को जीत कर, अत्यन्त उच्छरंकल मंतुरंग को नियंत्रित करने का प्रयास असफल रहता हैं, बार-बार खेद और निराशा ही हाथ लगती है।
गुरु भजन

गुरू महिमा-


अजन्मा प्रभु!
जिन योगियों ने अपनी इंद्रियों और प्राणों को वश में कर लिया है,वह भी, जब गुरुदेव के चरणोंकी शरण न लेकर उच्छरंकल एवं अत्यंत चंचल मन-तुरंगको अपने वशमें करने का प्रयत्न करते हैं, तब अपने साधनों में सफल नहीं होते।
उन्हें उन्हें बार-बार खेद और सैकड़ों विपत्तियों का सामना करना पड़ता है, केवल श्रम और दु:ख ही उनके हाथ लगता है।उनकी ठीक वही दशा होती है, जैसी समुद्र में बिना कर्णधार की नाव पर यात्रा करने वाले व्यापारियों की होती है। (तात्पर्य यह कि जो मन को वश में करना चाहते हैं उनके लिए कर्णधार गुरु की अनिवार्य आवश्यकता है।)
गुरूमहिमाGurumahima प्रभु पाद
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा। हे नाथ नारायण वासुदेवा हे नाथ नारायण वासुदेवा। कृष्णाय वासुदेवाय हरए परमात्मने, प्रणत क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः।
गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताए। 
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्वर गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।
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